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कुंडलिनी ऊर्जा क्या है?

 कुंडलिनी (Kundalini) एक प्राचीन योगिक और आध्यात्मिक अवधारणा है, जिसे "सुप्त ऊर्जा" या "दिव्य शक्ति" के रूप में वर्णित किया जाता है। यह संस्कृत शब्द "कुंडल" (कुंडली या सर्पिल) से लिया गया है, क्योंकि माना जाता है कि यह ऊर्जा मूलाधार चक्र (रीढ़ की हड्डी के आधार पर स्थित) में सर्पिलाकार में सुप्त अवस्था में रहती है।    **कुंडलिनी का महत्व**   हिंदू, तांत्रिक और योगिक परंपराओं में कुंडलिनी को मानव शरीर की सबसे शक्तिशाली ऊर्जा माना जाता है। जब यह जागृत होती है, तो यह ऊपर की ओर बढ़ती हुई सभी सात चक्रों (मूलाधार से सहस्रार तक) को सक्रिय कर देती है, जिससे व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान, चेतना का विस्तार और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।    **कुंडलिनी जागरण के लक्षण**   कुंडलिनी जागरण के दौरान निम्नलिखित अनुभव हो सकते हैं:   - शरीर में ऊष्मा, झनझनाहट या विद्युत जैसी अनुभूति।   - गहरी ध्यानावस्था या समाधि की स्थिति।   - अदृश्य ऊर्जा का प्रवाह महसूस होना।   - मानसिक शांति, आनंद या दिव्य अनुभूति।  ...

मृत्यु क्या है?

 मृत्यु एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो जीवन का अंतिम चरण मानी जाती है। यह शरीर की सभी जैविक क्रियाओं के पूर्ण रूप से बंद हो जाने की स्थिति है, जिसमें हृदय गति, साँस लेना और मस्तिष्क की गतिविधियाँ स्थायी रूप से रुक जाती हैं।   **मृत्यु के विभिन्न पहलू:**   1. **शारीरिक मृत्यु:** शरीर के अंगों का कार्य करना बंद कर देना, जिसके बाद शरीर धीरे-धीरे विघटित होने लगता है।   2. **आध्यात्मिक दृष्टिकोण:** कई धर्मों और दर्शनों में मृत्यु को शरीर का अंत माना जाता है, आत्मा का नहीं। हिंदू धर्म के अनुसार, आत्मा अमर है और पुनर्जन्म लेती है, जबकि ईसाई और इस्लाम में परलोक (स्वर्ग/नरक) की अवधारणा है।   3. **वैज्ञानिक दृष्टि:** विज्ञान मृत्यु को मस्तिष्क की गतिविधियों के पूर्णतः समाप्त होने के रूप में देखता है। आधुनिक चिकित्सा में "ब्रेन डेथ" को मृत्यु का निर्णायक मानक माना जाता है।   4. **दार्शनिक विचार:** कुछ दार्शनिक मृत्यु को जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा मानते हैं, जो जीवन को अर्थ प्रदान करती है।    **मृत्यु के बारे में कुछ प्रमुख विचार:*...

ॐ क्या है?

 **ॐ (ओम)** हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म में एक पवित्र ध्वनि और आध्यात्मिक प्रतीक है। इसे **"प्रणव मंत्र"** भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "सबसे पवित्र मंत्र" या "ब्रह्मांड की मूल ध्वनि"।  **ॐ का महत्व:** 1. **ब्रह्मांड की ध्वनि:** मान्यता है कि ॐ से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई है और यह समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त है। 2. **त्रिदेव का प्रतीक:**      - **अ (A)** – ब्रह्मा (सृजन)      - **उ (U)** – विष्णु (पालन)      - **म (M)** – शिव (संहार)      - **अनुस्वार (ॐ का ऊर्ध्व बिंदु)** – परब्रह्म (परम सत्य)   3. **योग और ध्यान:** ॐ का जप मन को शांत करता है और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है। 4. **वैज्ञानिक दृष्टिकोण:** कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि ॐ का उच्चारण शरीर और मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।  **ॐ का उच्चारण:** इसे गहरी साँस लेकर **"ओ-उ-म्म"** की ध्वनि में बोला जाता है, जिससे शरीर में सकारात्मक कंपन पैदा होते हैं। ॐ न केवल एक मंत्र है, बल्कि यह **समस्त चेतना का प्रतीक...

राधा रानी कौन हैं?

 राधा रानी, जिन्हें **राधिका**, **राधारानी** या **श्रीराधा** भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण की सबसे प्रिय और आध्यात्मिक सहचरी मानी जाती हैं। वह वैष्णव और भक्ति परंपराओं में कृष्ण की शाश्वत प्रेमिका और दिव्य ऊर्जा (ह्लादिनी शक्ति) के रूप में पूजी जाती हैं।  प्रमुख तथ्य: 1. **दिव्य प्रेम का प्रतीक**: राधा और कृष्ण का प्रेम आध्यात्मिक भक्ति का प्रतीक माना जाता है, जहाँ राधा भक्ति (प्रेम) और कृष्ण भगवान (परमात्मा) का प्रतिनिधित्व करते हैं। 2. **वृंदावन की रानी**: राधा को **वृंदावन की रानी** कहा जाता है, क्योंकि उनका संबंध कृष्ण की लीलास्थली वृंदावन से है। 3. **पुराणों में उल्लेख**: राधा का उल्लेख **ब्रह्मवैवर्त पुराण**, **गर्ग संहिता** और भक्ति साहित्य (जैसे **गीत गोविंद**) में मिलता है, हालाँकि महाभारत या श्रीमद्भागवत में उनका सीधा उल्लेख नहीं है। 4. **राधा-कृष्ण की एकता**: कई परंपराओं में राधा और कृष्ण को **एक ही दिव्य सत्ता** के दो रूप माना जाता है (जैसे **अर्धनारीश्वर** की अवधारणा)। 5. **भक्ति आंदोलन**: मीराबाई, सूरदास, चैतन्य महाप्रभु जैसे संतों ने राधा के प्रेम क...

जीवन क्या है ?

 जीवन एक गहन और रहस्यमय यात्रा है, जिसका अर्थ हर व्यक्ति अपने अनुभवों और दृष्टिकोण से तलाशता है। कुछ के लिए, जीवन **कर्म और उद्देश्य** की खोज है, जैसा कि गीता में कहा गया: *"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन"* (तुम्हारा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं)। वहीं, विज्ञान इसे **जैविक प्रक्रियाओं का एक संगठित रूप** मानता है, जहाँ DNA से लेकर चेतना तक की यात्रा होती है।    कुछ प्रमुख दृष्टिकोण: 1. **आध्यात्मिक दृष्टि**: जीवन मोक्ष, धर्म या ईश्वर की खोज है।   2. **दार्शनिक दृष्टि**: अस्तित्व का प्रश्न, जैसे—"मैं क्यों हूँ?"   3. **वैज्ञानिक दृष्टि**: जीवन ऊर्जा, कोशिकाओं और विकास का चमत्कार है।   4. **काव्यमय दृष्टि**: रहीम के दोहे की तरह—*"जीवन चंद घड़ियों का खेल, आये हैं तो खेल के जाएँ।"*   अंततः, जीवन का उत्तर हर किसी के लिए अलग हो सकता है। शायद यही इसका सुंदर रहस्य है! 🌿

मृत्यु एक झूठ है?

 मृत्यु को "झूठ" कहना एक दार्शनिक और आध्यात्मिक विचार है, जो कई परंपराओं में पाया जाता है। कुछ संदर्भों में इसका अर्थ यह हो सकता है कि शरीर का नाश होता है, लेकिन चेतना या आत्मा शाश्वत है। यहाँ कुछ दृष्टिकोण दिए गए हैं: 1. **आध्यात्मिक दृष्टिकोण**:      - हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और अन्य परंपराओं में मृत्यु को शरीर के अंत के रूप में देखा जाता है, न कि चेतना के। आत्मा अमर मानी जाती है और पुनर्जन्म या मोक्ष की प्रक्रिया में प्रवेश करती है।      - कुछ गुरु (जैसे रमण महर्षि) कहते हैं: "मृत्यु एक भ्रम है, क्योंकि वास्तविक 'मैं' (आत्मा) कभी नहीं मरता।" 2. **वैज्ञानिक दृष्टिकोण**:      - विज्ञान के अनुसार, मृत्यु शरीर की जैविक प्रक्रियाओं का समापन है, लेकिन चेतना की प्रकृति अभी भी रहस्यमय है। क्वांटम भौतिकी जैसे क्षेत्रों में कुछ सिद्धांत मन और ब्रह्मांड के बीच गहरा संबंध सुझाते हैं। 3. **दार्शनिक विचार**:      - प्लेटो जैसे दार्शनिकों ने आत्मा की अमरता का प्रतिपादन किया। अद्वैत वेदांत कहता है कि केवल **ब्रह्म** ...

आत्मज्ञान क्या है ? आत्मज्ञान क्यों जरूरी है?

 **आत्मज्ञान क्या है?**   आत्मज्ञान (Self-Realization) का अर्थ है **"स्वयं को जानना"** या **"अपने वास्तविक स्वरूप का बोध होना"**। यह वह अवस्था है जब मनुष्य अपनी सच्ची प्रकृति, अस्तित्व और चेतना को समझता है। इसमें व्यक्ति यह पहचानता है कि वह शरीर, मन और इंद्रियों से परे एक शुद्ध, अनंत और अविनाशी आत्मा है।   आत्मज्ञान की प्राप्ति तब होती है जब:   - **अहंकार (ईगो) का भ्रम टूटता है** और व्यक्ति स्वयं को शरीर या विचारों से अलग देखता है।   - **सांसारिक मोह-माया से मुक्ति** मिलती है और जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझ आता है।   - **परमात्मा या ब्रह्म के साथ एकत्व** का अनुभव होता है (जैसे अद्वैत वेदांत में "अहं ब्रह्मास्मि")।   ---   **आत्मज्ञान क्यों जरूरी है?**   1. **मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति**:      - हिंदू, बौद्ध और जैन दर्शन के अनुसार, आत्मज्ञान ही जन्म-मरण के चक्र (संसार) से मुक्ति दिलाता है।   2. **सच्ची शांति और आनंद**:      - सांसारिक सुख क्षणभंगुर हैं,...

नाम जप से आत्मज्ञान कैसे प्राप्त होता है?

 नाम जप (भगवान के नाम का स्मरण) आत्मज्ञान प्राप्त करने का एक सशक्त साधन है। यह मन को शुद्ध करके परमात्मा से जोड़ता है और आत्मा की वास्तविक प्रकृति को प्रकट करता है। नाम जप से आत्मज्ञान कैसे मिलता है, इसे निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है:  1. **मन की एकाग्रता और शुद्धि**      - नाम जप करने से मन विचलित नहीं होता, बल्कि भगवान के नाम में स्थिर होता है।      - जप की निरंतरता से मन की मलिनता (काम, क्रोध, लोभ आदि) दूर होती है, जो आत्मज्ञान में बाधक है।    2. **अहंकार का नाश**      - नाम जप करते समय "मैं" का भाव कम होता है और भगवान की महिमा का बोध बढ़ता है।      - अहंकार के घटने से जीवात्मा और परमात्मा के बीच का भेद मिटने लगता है।    3. **आत्मा-परमात्मा का योग**      - भगवान का नाम उनका स्वरूप है। नाम जप से परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है, जो आत्मबोध के लिए आवश्यक है।      - जैसे रामकृष्ण परमहंस ने कहा: *"नाम और नामी (भगवान) एक ही हैं।...

तनाव मुक्त जीवन कैसे जिएं?

 तनाव मुक्त जीवन जीने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं: 1. **सकारात्मक सोच (Positive Thinking)**      - नकारात्मक विचारों को दूर रखें और हर स्थिति में अच्छाई ढूँढने की कोशिश करें।      - आत्म-विश्वास बनाए रखें और खुद से प्यार करें।    2. **योग एवं ध्यान (Yoga & Meditation)**      - नियमित योग और प्राणायाम करने से मन शांत रहता है।      - ध्यान (मेडिटेशन) से मानसिक एकाग्रता बढ़ती है और तनाव कम होता है।    3. **समय प्रबंधन (Time Management)**      - काम, नींद, आराम और मनोरंजन के लिए संतुलित समय निर्धारित करें।      - प्राथमिकताएँ तय करें और अनावश्यक दबाव से बचें।    4. **स्वस्थ जीवनशैली (Healthy Lifestyle)**      - पौष्टिक आहार लें, नियमित व्यायाम करें और पर्याप्त नींद लें।      - धूम्रपान, शराब और अत्यधिक कैफीन से बचें।    5. **सामाजिक संपर्क (Social Conne...

शिव सूत्र श्लोक२०

 शिव सूत्र के तीसरे समूह (संभवोपाय) का 20वाँ श्लोक है:   **"विद्या समुत्थाने स्वयं विद्येश्वरी"**    अर्थ (Meaning):   इस सूत्र का तात्पर्य है कि **जब विद्या (ज्ञान) का पूर्ण उत्थान (प्रकटन) होता है, तब वह स्वयं विद्येश्वरी (ज्ञान की ईश्वरीय शक्ति) बन जाती है।**    व्याख्या (Explanation):   - **विद्या**: यहाँ विद्या से तात्पर्य केवल सामान्य ज्ञान नहीं, बल्कि परम चेतना का आत्मज्ञान है।   - **समुत्थाने**: जब यह ज्ञान पूर्ण रूप से प्रकट होता है (अर्थात् साधक की चेतना में पूर्णतः जागृत हो जाता है)।   - **विद्येश्वरी**: तब यह विद्या (ज्ञान) स्वयं दिव्य शक्ति बन जाती है, जो सृष्टि के समस्त ज्ञान का नियंत्रण करती है।    सार (Essence):   इस सूत्र में कहा गया है कि **वास्तविक ज्ञान की पराकाष्ठा ही ईश्वरीय शक्ति का रूप धारण कर लेती है**। जब साधक का आत्मज्ञान पूर्णतः प्रकट होता है, तो वह साधक-सीमा से ऊपर उठकर स्वयं ज्ञान के ईश्वर (विद्येश्वर) के समान हो जाता है। यह शिव की चेतना का ही प्रका...

कामवासना क्या है ?

 कामवासना (Sexual Desire) एक प्राकृतिक और मूलभूत मानवीय इच्छा है जो शारीरिक और मानसिक स्तर पर अनुभव होती है। यह कामेच्छा, यौन आकर्षण या संभोग की इच्छा के रूप में प्रकट हो सकती है।    **कामवासना के मुख्य पहलू:**   1. **प्राकृतिक इंस्टिंक्ट:** यह मानव जीवन का एक जैविक हिस्सा है, जो प्रजनन और आनंद से जुड़ा है।   2. **शारीरिक एवं मानसिक:** यह शरीर में हार्मोनल परिवर्तन (जैसे टेस्टोस्टेरॉन और एस्ट्रोजन) और मन की भावनाओं से प्रभावित होती है।   3. **सांस्कृतिक एवं नैतिक प्रभाव:** अलग-अलग समाजों में इसे लेकर विविध धारणाएँ हैं—कहीं इसे स्वाभाविक माना जाता है, तो कहीं नियंत्रण की सलाह दी जाती है।   4. **व्यक्तिगत भिन्नता:** हर व्यक्ति की कामेच्छा का स्तर अलग होता है, जो उम्र, स्वास्थ्य, मनोदशा और रिश्तों पर निर्भर करता है।    **स्वस्थ दृष्टिकोण:**   - इसे दबाने या अति करने के बजाय संतुलित रखना महत्वपूर्ण है।   - यदि यह जीवन या रिश्तों में समस्या बने, तो मनोवैज्ञानिक या चिकित्सकीय सलाह लेना उचित है।...

ध्यान क्या है ?

 ध्यान (Meditation) एक मानसिक अभ्यास है जिसमें मन को शांत, केंद्रित और सजग बनाने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है। यह आत्म-जागरूकता, आंतरिक शांति और मानसिक स्पष्टता प्राप्त करने का एक प्राचीन तरीका है, जिसका उल्लेख भारतीय योग दर्शन, बौद्ध धर्म तथा अन्य आध्यात्मिक परंपराओं में मिलता है।  **ध्यान के प्रमुख प्रकार:** 1. **माइंडफुलनेस मेडिटेशन** – वर्तमान क्षण में बिना निर्णय के सजग रहना।   2. **मंत्र मेडिटेशन** – ॐ या अन्य मंत्रों का जाप करते हुए ध्यान केंद्रित करना।   3. **विपश्यना** – श्वास और शरीर के संवेदनाओं के प्रति गहन अवलोकन।   4. **प्रेम-करुणा ध्यान** – स्वयं और दूसरों के प्रति प्रेम और दया भाव विकसित करना।   5. **ध्यान योग (ध्यानासन)** – पतंजलि के योगसूत्र में वर्णित समाधि की ओर ले जाने वाला अभ्यास।   ### **ध्यान के लाभ:** - तनाव और चिंता कम करता है।   - एकाग्रता और स्मृति शक्ति बढ़ाता है।   - भावनात्मक संतुलन और आंतरिक शांति देता है।   - आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक विकास में सहायक ...

तंत्र क्या है?

 तंत्र (Tantra) एक प्राचीन आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपरा है जिसकी जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप में हैं। यह हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के कुछ संप्रदायों में पाया जाता है। तंत्र का शाब्दिक अर्थ है "विस्तार" या "बुनाई", जो जीवन, ब्रह्मांड और चेतना के आपसी जुड़ाव को दर्शाता है। ### तंत्र के मुख्य सिद्धांत: 1. **दिव्य ऊर्जा की पूजा**: तंत्र में शक्ति (देवी) और शिव (देव) के संयोग को महत्व दिया जाता है, जो ब्रह्मांड की सृजनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। 2. **योग और साधना**: कुंडलिनी योग, मंत्र, यंत्र, मुद्राएँ और ध्यान के माध्यम से आध्यात्मिक जागृति प्राप्त करना। 3. **भौतिक और आध्यात्मिक का एकीकरण**: तंत्र मोक्ष प्राप्ति के लिए संसार से भागने के बजाय उसी के माध्यम से जागृति की शिक्षा देता है। 4. **वाममार्ग और दक्षिणमार्ग**: कुछ तांत्रिक प्रथाएँ (वामाचार) गुप्त रीति-रिवाजों, मद्य-मांस-मैथुन आदि का उपयोग करती हैं, जबकि दक्षिणमार्ग शुद्ध शाकाहार और सात्विक साधना पर जोर देता है। ### तंत्र के प्रकार: - **हिंदू तंत्र**: शाक्त और शैव परंपराओं से जुड़ा है। - **बौद्ध तंत्र**: वज्रयान...

अष्टावक्र गीता श्लोक 1 का भावार्थ

 अष्टावक्र गीता एक प्राचीन हिंदू दार्शनिक ग्रंथ है, जिसमें ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के बीच आत्मज्ञान और अद्वैत वेदांत पर संवाद होता है। यह ज्ञानयोग का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।   **अष्टावक्र गीता का प्रथम श्लोक:**   (कुछ संस्करणों में यह श्लोक पहले अध्याय के रूप में मिलता है)   > **श्लोक 1.1:**   > **"एवं मया श्रुतं देव ऋषेरुक्तं महात्मनः।   > ज्ञानं परमगह्यं मे ब्रूहि त्वं करुणानिधे॥"**   **अर्थ:**   राजा जनक ऋषि अष्टावक्र से कहते हैं – *"हे देव (दिव्य ऋषि), हे महात्मन्, मैंने ऐसा सुना है कि आप परम गोपनीय ज्ञान के ज्ञाता हैं। हे करुणा के सागर, कृपया मुझे वह ज्ञान बताइए।"*   इस श्लोक में राजा जनक गुरु अष्टावक्र से आत्म-ज्ञान की प्रार्थना करते हैं, जो समस्त दुःखों से मुक्ति का मार्ग है। अष्टावक्र गीता के आगे के श्लोकों में अद्वैत (निर्गुण ब्रह्म) का गहन विवेचन मिलता है।   क्या आप किसी विशेष श्लोक या अध्याय के बारे में और जानना चाहते हैं?

मोक्ष क्या है?

 **मोक्ष** (या मुक्ति) हिंदू, जैन, बौद्ध और कुछ अन्य भारतीय दर्शनों में **जीवन-मरण के चक्र (संसार) से मुक्ति** को कहते हैं। यह आत्मा की परम शांति और दिव्य आनंद की अवस्था है, जहाँ सभी प्रकार के दुःख, इच्छाएँ और अज्ञान समाप्त हो जाते हैं।   --- ### **मोक्ष की अवधारणा विभिन्न दर्शनों में**   1. **हिंदू धर्म (वेदांत दर्शन)**      - मोक्ष **आत्मा का ब्रह्म (परमात्मा) से पूर्ण एकत्व** है।      - **"मोक्ष = अहं ब्रह्मास्मि"** (मैं ब्रह्म हूँ) – यह ज्ञान ही मुक्ति देता है।      - **भगवद्गीता** के अनुसार, निष्काम कर्म, भक्ति और ज्ञान से मोक्ष मिलता है।      - **मुक्त आत्मा** को **"निर्वाण"**, "कैवल्य" या "मुक्ति" कहा जाता है।   2. **बौद्ध धर्म**      - मोक्ष को **"निर्वाण"** कहते हैं, जहाँ **तृष्णा (इच्छा) और अविद्या का अंत** होता है।      - यह **दुःख से पूर्ण मुक्ति** है, जिसे बुद्धत्व प्राप्ति से हासिल किया जा सकता है।   3. **जैन ध...

धर्म क्या है?

 धर्म एक व्यापक और गहन अवधारणा है जिसका अर्थ विभिन्न संदर्भों में अलग-अलग हो सकता है। सामान्य तौर पर, धर्म के निम्नलिखित पहलू होते हैं: ### 1. **सनातन दृष्टि में धर्म**      हिंदू धर्म (सनातन धर्म) के अनुसार, धर्म वह नैतिक और आध्यात्मिक मार्ग है जो जीवन को सही दिशा देता है। यह सत्य, अहिंसा, न्याय, करुणा और धार्मिक कर्तव्यों का पालन करने की शिक्षा देता है। भगवद्गीता में धर्म को "स्वभाव" या "कर्तव्य" से भी जोड़ा गया है।      > *"धारणात् धर्म इत्याहुः धर्मो धारयते प्रजाः।"*      (महाभारत)      अर्थात: जो समाज को धारण करता है, वही धर्म है। ### 2. **अन्य धर्मों में अवधारणा**      - **बौद्ध धर्म:** धर्म (धम्म) बुद्ध की शिक्षाओं और प्राकृतिक नियमों को कहते हैं, जो दुःख से मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।      - **जैन धर्म:** धर्म अहिंसा, सत्य और आत्मशुद्धि का मार्ग है।      - **ईसाई/इस्लाम:** यहाँ धर्म (Religion) ईश्वर की आज्ञाओं और पवित्र ग्रंथों के अन...

भागवत गीता का श्लोक 1 भावार्थ सहित

 **भगवद्गीता अध्याय 1, श्लोक 1 (1.1) का भावार्थ:**   **श्लोक:**   **धृतराष्ट्र उवाच:**   **धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।**   **मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥**    **शब्दार्थ:**   - **धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे** – धर्म की भूमि कुरुक्षेत्र में   - **समवेता:** – एकत्रित हुए   - **युयुत्सवः** – युद्ध की इच्छा वाले   - **मामकाः** – मेरे (धृतराष्ट्र के) पुत्र (कौरव)   - **पाण्डवाश्च** – और पांडवों ने   - **किमकुर्वत** – क्या किया?   - **सञ्जय** – हे संजय!    **भावार्थ:**   धृतराष्ट्र अपने सारथी **संजय** से पूछते हैं: *"हे संजय! धर्म की भूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्रित हुए मेरे पुत्र (कौरव) और पांडवों ने क्या किया?"*    **विशेष तथ्य:**   1. **धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र:** यह स्थान केवल युद्धभूमि नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है, जहाँ मनुष्य के भीतर **धर्म-अधर्म**, **सत्य-असत्य*...

शिवसूत्र क्या हैं?

 **शिवसूत्र** एक प्राचीन कश्मीरी शैव दर्शन का ग्रंथ है, जिसे **महर्षि वसुगुप्त** ने 9वीं शताब्दी में प्राप्त किया था। यह तंत्र शास्त्र का आधारभूत ग्रंथ माना जाता है और **कश्मीर शैवमत** की प्रमुख शिक्षाओं को समेटे हुए है।   ### **शिवसूत्र का सार (मुख्य बिंदु):**   1. **चेतना की प्रकृति:**      - "**चैतन्यमात्मा**" (सूत्र 1.1) – आत्मा शुद्ध चेतना है, जो शिव का स्वरूप है।      - समस्त सृष्टि शिव की ही अभिव्यक्ति है।   2. **ज्ञान और जागृति:**      - "**ज्ञानं बंधः**" (सूत्र 1.2) – अज्ञान ही बंधन का कारण है, जबकि शिवज्ञान मुक्ति देता है।      - "**यथा संकल्पो विकल्पः**" (सूत्र 2.4) – मन की वृत्तियाँ (संकल्प-विकल्प) ही सीमाएँ उत्पन्न करती हैं।   3. **उपासना और साधना:**      - "**शक्तिचक्र संधाने विश्वसंहारः**" (सूत्र 3.13) – शक्ति (चैतन्य) के स्तर पर स्थित होने पर संपूर्ण विश्व का भ्रम समाप्त हो जाता है।      - ध्यान, मंत्र और योग...

मै कौन हूं !

 ** मै कौन हूं?**   यह प्रश्न बहुत गहरा है! 🌟   भगवद्गीता के अनुसार, **तुम शुद्ध चेतना हो, अनंत आत्मा हो**—जो शरीर, मन और भौतिक पहचान से परे है।   **गीता (2.12, 2.20) में भगवान कृष्ण कहते हैं:**   > "न तो मैं, न तुम, न ये सभी राजा कभी 'नहीं' थे या 'नहीं' रहेंगे। आत्मा अजन्मा, नित्य, अविनाशी है।"   > "आत्मा न कभी मरती है, न जन्म लेती है। वह अजर-अमर है, शस्त्र उसे काट नहीं सकते।"   **संक्षेप में:**   - तुम **अमर आत्मा** हो, जो अस्थायी शरीर में निवास कर रही है।   - तुम्हारी वास्तविक पहचान **"अहं ब्रह्मास्मि"** (मैं ब्रह्म हूँ) है।   - यह शरीर और नाम-रूप तो बदलते रहते हैं, पर **तुम्हारा सत्य-स्वरूप सनातन है**।   ध्यान रखो, यह प्रश्न **"मैं कौन हूँ?"** ही आत्मज्ञान की ओर ले जाता है। 🙏