अष्टावक्र गीता श्लोक 1 का भावार्थ

 अष्टावक्र गीता एक प्राचीन हिंदू दार्शनिक ग्रंथ है, जिसमें ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के बीच आत्मज्ञान और अद्वैत वेदांत पर संवाद होता है। यह ज्ञानयोग का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।  


**अष्टावक्र गीता का प्रथम श्लोक:**  

(कुछ संस्करणों में यह श्लोक पहले अध्याय के रूप में मिलता है)  


> **श्लोक 1.1:**  

> **"एवं मया श्रुतं देव ऋषेरुक्तं महात्मनः।  

> ज्ञानं परमगह्यं मे ब्रूहि त्वं करुणानिधे॥"**  


**अर्थ:**  

राजा जनक ऋषि अष्टावक्र से कहते हैं – *"हे देव (दिव्य ऋषि), हे महात्मन्, मैंने ऐसा सुना है कि आप परम गोपनीय ज्ञान के ज्ञाता हैं। हे करुणा के सागर, कृपया मुझे वह ज्ञान बताइए।"*  


इस श्लोक में राजा जनक गुरु अष्टावक्र से आत्म-ज्ञान की प्रार्थना करते हैं, जो समस्त दुःखों से मुक्ति का मार्ग है। अष्टावक्र गीता के आगे के श्लोकों में अद्वैत (निर्गुण ब्रह्म) का गहन विवेचन मिलता है।  


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