शिव सूत्र श्लोक२०
शिव सूत्र के तीसरे समूह (संभवोपाय) का 20वाँ श्लोक है:
**"विद्या समुत्थाने स्वयं विद्येश्वरी"**
अर्थ (Meaning):
इस सूत्र का तात्पर्य है कि **जब विद्या (ज्ञान) का पूर्ण उत्थान (प्रकटन) होता है, तब वह स्वयं विद्येश्वरी (ज्ञान की ईश्वरीय शक्ति) बन जाती है।**
व्याख्या (Explanation):
- **विद्या**: यहाँ विद्या से तात्पर्य केवल सामान्य ज्ञान नहीं, बल्कि परम चेतना का आत्मज्ञान है।
- **समुत्थाने**: जब यह ज्ञान पूर्ण रूप से प्रकट होता है (अर्थात् साधक की चेतना में पूर्णतः जागृत हो जाता है)।
- **विद्येश्वरी**: तब यह विद्या (ज्ञान) स्वयं दिव्य शक्ति बन जाती है, जो सृष्टि के समस्त ज्ञान का नियंत्रण करती है।
सार (Essence):
इस सूत्र में कहा गया है कि **वास्तविक ज्ञान की पराकाष्ठा ही ईश्वरीय शक्ति का रूप धारण कर लेती है**। जब साधक का आत्मज्ञान पूर्णतः प्रकट होता है, तो वह साधक-सीमा से ऊपर उठकर स्वयं ज्ञान के ईश्वर (विद्येश्वर) के समान हो जाता है। यह शिव की चेतना का ही प्रकाश है।
इस सूत्र की गहराई कश्मीर शैव दर्शन के अनुसार **"ज्ञान ही शिव है"** के सिद्धांत को दर्शाती है।
क्या आप इस सूत्र से जुड़ा कोई विशेष पहलू जानना चाहेंगे?
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