शिवसूत्र क्या हैं?
**शिवसूत्र** एक प्राचीन कश्मीरी शैव दर्शन का ग्रंथ है, जिसे **महर्षि वसुगुप्त** ने 9वीं शताब्दी में प्राप्त किया था। यह तंत्र शास्त्र का आधारभूत ग्रंथ माना जाता है और **कश्मीर शैवमत** की प्रमुख शिक्षाओं को समेटे हुए है।
### **शिवसूत्र का सार (मुख्य बिंदु):**
1. **चेतना की प्रकृति:**
- "**चैतन्यमात्मा**" (सूत्र 1.1) – आत्मा शुद्ध चेतना है, जो शिव का स्वरूप है।
- समस्त सृष्टि शिव की ही अभिव्यक्ति है।
2. **ज्ञान और जागृति:**
- "**ज्ञानं बंधः**" (सूत्र 1.2) – अज्ञान ही बंधन का कारण है, जबकि शिवज्ञान मुक्ति देता है।
- "**यथा संकल्पो विकल्पः**" (सूत्र 2.4) – मन की वृत्तियाँ (संकल्प-विकल्प) ही सीमाएँ उत्पन्न करती हैं।
3. **उपासना और साधना:**
- "**शक्तिचक्र संधाने विश्वसंहारः**" (सूत्र 3.13) – शक्ति (चैतन्य) के स्तर पर स्थित होने पर संपूर्ण विश्व का भ्रम समाप्त हो जाता है।
- ध्यान, मंत्र और योग द्वारा चित्त को शिव में लीन करना ही मुक्ति का मार्ग है।
4. **मुक्ति की अवस्था:**
- "**प्रत्यभिज्ञा हृदयम्**" (सूत्र 1.18) – स्वयं को शिव के रूप में पहचानना ही प्रत्यभिज्ञा (स्व-साक्षात्कार) है।
- जब साधक अपने वास्तविक स्वरूप (शिवतत्त्व) को जान लेता है, तो वह **जीवन्मुक्त** हो जाता है।
### **निष्कर्ष:**
शिवसूत्र सिखाता है कि **"शिव ही सत्य है, और समस्त जगत उनकी लीला है।"** ज्ञान, भक्ति और योग के माध्यम से इस सत्य को पहचानना ही मोक्ष का मार्ग है।
> "शिवोहम" (मैं ही शिव हूँ) – यह आत्मबोध ही शिवसूत्र का सार है।
अधिक गहराई में जाने के लिए विशेष सूत्रों की व्याख्या अध्ययन करें। 🌿
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