आदिगुरु शंकराचार्य का दर्शन !
आदिगुरु **शंकराचार्य** (लगभग 788–820 ईस्वी) भारतीय दर्शन के महान विचारक, अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक और हिन्दू धर्म के पुनरुत्थानकर्ता थे। उनका दर्शन **अद्वैत वेदांत** (Non-Dualism) कहलाता है, जो वेदों और उपनिषदों पर आधारित है।
**शंकराचार्य के दर्शन के मुख्य सिद्धांत:**
**1. अद्वैतवाद (ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या)**
- शंकराचार्य के अनुसार, **ब्रह्म** ही एकमात्र सत्य है, जो निर्गुण (गुणरहित), निराकार (आकारहीन) और अनन्त है।
- संसार (जगत) **माया** के कारण प्रतीत होता है, पर वास्तविक नहीं है। माया एक ऐसी शक्ति है जो ब्रह्म को सीमित रूपों में दिखाती है।
- **"ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः"**
(ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है, और जीव वास्तव में ब्रह्म ही है।)
**2. जीव और ब्रह्म की एकता**
- शंकराचार्य कहते हैं कि **आत्मा (जीव)** वास्तव में **ब्रह्म** ही है, पर अज्ञान (अविद्या) के कारण स्वयं को अलग समझता है।
- **"तत्त्वमसि"** (तू वही है) – छांदोग्य उपनिषद का यह महावाक्य अद्वैत का प्रमुख आधार है।
**3. माया का सिद्धांत**
- माया वह भ्रम है जो ब्रह्म को अनेक रूपों में दिखाती है। यह न तो सत्य है, न असत्य, बल्कि **अनिर्वचनीय** (वर्णनातीत) है।
- माया के दो पहलू हैं:
- **आवरण शक्ति** (ज्ञान को ढकना)
- **विक्षेप शक्ति** (भ्रमित करना)
**4. ज्ञान मार्ग द्वारा मोक्ष**
- शंकराचार्य के अनुसार, मोक्ष प्राप्ति के लिए **ज्ञान (आत्म-साक्षात्कार)** ही एकमात्र साधन है।
- कर्मकांड और भक्ति सहायक हैं, परन्तु अंतिम मुक्ति **विवेक और वैराग्य** से ही संभव है।
- **"ब्रह्मज्ञानेन मोक्षः"** – ब्रह्म का साक्षात्कार ही मोक्ष है।
**5. विवर्तवाद (अवस्था भेद)**
- शंकराचार्य ने **विवर्तवाद** (Appearance Theory) दिया, जिसके अनुसार जगत ब्रह्म का **विकार नहीं**, बल्कि **भ्रम** है।
- जैसे रस्सी में साँप का भ्रम होता है, वैसे ही ब्रह्म में जगत का भ्रम है।
**शंकराचार्य की प्रमुख रचनाएँ:**
1. **भाष्य** (ब्रह्मसूत्र, उपनिषद् और गीता पर)
2. **विवेकचूड़ामणि**
3. **दशश्लोकी**
4. **आत्मबोध**
5. **सौंदर्यलहरी** (कुछ विद्वान इन्हें शंकराचार्य की रचना नहीं मानते)
**निष्कर्ष:**
शंकराचार्य का अद्वैत दर्शन बताता है कि **"एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति"** (सत्य एक है, ज्ञानी उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं)। उनके अनुसार, **मुक्ति का मार्ग आत्मज्ञान** है, जिसमें व्यक्ति यह समझ लेता है कि **"अहं ब्रह्मास्मि"** (मैं ही ब्रह्म हूँ)।
शंकराचार्य ने भारत में चार मठों (द्वारका, ज्योतिर्मठ, शृंगेरी, गोवर्धन) की स्थापना करके सनातन धर्म को पुनर्जीवित किया। उनका दर्शन आज भी भारतीय चिंतन का आधार है !
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