दुःख क्या है ? इससे मुक्ति कैसे संभव हो ?

दुःख एक मानसिक और भावनात्मक अनुभव है जो असंतोष, पीड़ा, चिंता या कष्ट के रूप में प्रकट होता है। यह किसी इच्छा की पूर्ति न होने, अपनों से बिछड़ने, असफलता, रोग, या किसी अनिष्ट की आशंका के कारण उत्पन्न हो सकता है। भारतीय दर्शन, विशेषकर बौद्ध और वेदांत में, दुःख को *अनित्यता* (अस्थायित्व) और *अज्ञान* (अविद्या) का परिणाम माना गया है।  


**दुःख से मुक्ति कैसे संभव है?**  


1. **अज्ञान का नाश (विवेक जागृति):**  

   - वेदांत के अनुसार, दुःख का मूल कारण *अविद्या* (असल स्वरूप को न जानना) है। जब मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप (आत्मा या ब्रह्म) को भूलकर शरीर, मन और भौतिक सुखों से तादात्म्य बना लेता है, तब दुःख उत्पन्न होता है।  

   - **समाधान:** स्वाध्याय, गुरु-मार्गदर्शन और आत्मचिंतन द्वारा "अहं ब्रह्मास्मि" (मैं अनंत चैतन्य हूँ) का बोध प्राप्त करना।  


2. **इच्छाओं का त्याग (तृष्णा-क्षय):**  

   - बौद्ध दर्शन के अनुसार, दुःख का मूल *तृष्णा* (लालसा) है। इच्छाएँ अनंत हैं, और उनका पूरा न होना दुःख देता है।  

   - **समाधान:** संयमित जीवन, अष्टांग मार्ग (बौद्ध मार्ग) का पालन और विवेकपूर्ण इच्छाओं का चयन।  


3. **कर्मयोग (निष्काम कर्म):**  

   - गीता के अनुसार, फल की आसक्ति छोड़कर कर्तव्यपालन करने से मन शांत होता है।  

   - **समाधान:** कर्म करो, पर परिणाम की चिंता न करो। यह मन की विकृति को दूर करता है।  


4. **ध्यान और मनःसंयम:**  

   - योग दर्शन में चित्त की वृत्तियों को रोककर (चित्तवृत्ति निरोध) दुःख से मुक्ति बताई गई है।  

   - **समाधान:** नियमित ध्यान, प्राणायाम और अंतर्मुखी होकर मन को स्थिर करना।  


5. **स्वीकार और समता:**  

   - जीवन के उतार-चढ़ाव को प्रकृति का नियम मानकर समभाव से स्वीकार करना। जैसे रामकृष्ण परमहंस कहते हैं— *"सुख-दुःख तो बादलों की छाया की तरह आते-जाते रहते हैं, आत्मा अविचल है।"*  


**निष्कर्ष:**  

दुःख से मुक्ति का मार्ग **आत्मज्ञान, इच्छाओं का संयम, निष्काम कर्म और मन की शुद्धि** में निहित है। यह कोई बाहरी परिवर्तन नहीं, बल्कि अंतर्दृष्टि और चेतना के विस्तार से प्राप्त होता है।  


> *"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।"*  

> — जब-जब धर्म का ह्रास होता है, तब-तब दुःख बढ़ता है। धर्म (आत्मनियम) का पालन ही मुक्ति का मार्ग है।

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