मन से मुक्त कैसे हों ?
**भगवद्गीता के अनुसार मन से मुक्ति (मन की वृत्तियों का नियंत्रण)**
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण मन की चंचलता और उससे मुक्ति के लिए गहन उपाय बताते हैं। मन को वश में करना ही योग है, और इसके लिए निम्न साधनों पर जोर दिया गया है:
**1. अभ्यास और वैराग्य (गीता 6.35-36)**
- मन चंचल और नियंत्रण में कठिन है, पर **निरंतर अभ्यास (अभ्यास-योग) और वैराग्य** से इसे वश में किया जा सकता है।
- **"असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्। अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।"**
*(हे अर्जुन, निस्संदेह मन चंचल और कठिनाई से नियंत्रित होने वाला है, पर अभ्यास और वैराग्य से इसे वश में किया जा सकता है।)*
**2. आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि (गीता 2.48-50)**
- **कर्मयोग**: फल की इच्छा छोड़कर निष्काम कर्म करने से मन स्थिर होता है।
- **"योगस्थः कुरु कर्माणि"** — योग में स्थित होकर कर्म करो।
- **समदर्शी भाव**: सुख-दुख, लाभ-हानि में समान भाव रखने से मन विचलित नहीं होता।
**3. ध्यान और एकाग्रता (गीता 6.12-14)**
- मन को **ईश्वर में स्थिर** करने के लिए ध्यान (ध्यानयोग) आवश्यक है।
- **"तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा..."** — इंद्रियों को वश में करके, एकाग्र मन से परमात्मा का ध्यान करो।
- नियमित अभ्यास से मन शांत होता है।
**4. भक्ति और समर्पण (गीता 9.22, 18.65-66)**
- **"मन्मना भव मद्भक्तः"** — मन को मुझमें लगाओ, मेरा भक्त बनो।
- भगवान कृष्ण कहते हैं कि सभी धर्मों को छोड़कर केवल उनकी शरण में आने से मनुष्य **सभी बंधनों से मुक्त** हो जाता है।
**5. सत्वगुण की प्रधानता (गीता 14.23-25)**
- रजोगुण (कामना) और तमोगुण (आलस्य) को कम करके **सत्वगुण (शुद्धता)** बढ़ाने से मन स्थिर होता है।
- **"निर्ममो निरहंकारः"** — ममता और अहंकार से मुक्ति पाओ।
**निष्कर्ष:**
गीता के अनुसार मन से मुक्ति का मार्ग है — **कर्मयोग, ज्ञानयोग, ध्यानयोग और भक्तियोग** का समन्वय। मन को ईश्वर में लगाना, इंद्रियों को वश में करना, और फल की इच्छा त्यागकर कर्म करना ही वास्तविक मुक्ति है।
> **"यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।"**
> *(जिधर-जिधर चंचल मन भटके, उसे वापस आत्मा में स्थिर करो। — गीता 6.26)*
अर्थात, मन को बाहरी विषयों से हटाकर परमात्मा में केन्द्रित करने से ही वह शांत होता है। 🌿
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