संसार एक सपना है !
**"संसार एक सपना है"**
यह विचार अद्वैत वेदांत, बौद्ध दर्शन और कई आध्यात्मिक परंपराओं में मिलता है। इसका अर्थ है कि यह दुनिया अस्थायी, मायावी और वास्तविकता के गहरे स्तर से परे एक प्रकार का भ्रम या स्वप्न है।
कुछ प्रमुख दृष्टिकोण:
1. **माया का सिद्धांत (अद्वैत वेदांत)**
- शंकराचार्य कहते हैं कि संसार "माया" है—एक ऐसी शक्ति जो ब्रह्म (परम सत्य) को ढककर जगत की विविधता दिखाती है। जागृति होने पर यह भ्रम टूट जाता है।
2. **बौद्ध दर्शन**
- बौद्ध धर्म में संसार को "शून्यता" या "अनित्य" (अस्थिर) माना गया है। सभी घटनाएँ क्षणभंगुर हैं, जैसे स्वप्न में दिखाई देने वाले दृश्य।
3. **कबीर और सूफी विचार**
- कबीर ने कहा: *"जग सपना भया मालूम, जागे तो सब खोया।"*
- सूफी परंपरा में भी दुनिया को "फ़ाना" (नश्वर) माना जाता है।
इसका व्यावहारिक अर्थ:
- यह विचार हमें मोह, लालच और दुःख से मुक्त होने की प्रेरणा देता है।
- वास्तविकता को जानने के लिए आत्मचिंतन और ध्यान जरूरी है।
**सार:** संसार को सपना मानने का तात्पर्य यह नहीं कि इसे नकार दें, बल्कि इसकी असली प्रकृति को समझकर मुक्त हो जाएँ। जैसे स्वप्न में डूबा व्यक्ति जागने पर उससे अलग हो जाता है, वैसे ही "जागृति" की अवस्था में ही सत्य का दर्शन होता है।
> *"ब्रह्म सत्यं, जगत मिथ्या"*
> (ब्रह्म ही सत्य है, जगत माया है) — शंकराचार्य
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