मृत्यु क्या है ? कठोपनिषद की व्याख्या
मृत्यु पर **कठोपनिषद** (जो यम और नचिकेता के संवाद पर आधारित है) में गहन दार्शनिक विचार प्रस्तुत किया गया है। इस उपनिषद के अनुसार, मृत्यु केवल शरीर का अंत नहीं, बल्कि अज्ञान के अंत और आत्मज्ञान की प्राप्ति का प्रतीक भी है। नचिकेता और यमराज के संवाद से इसकी व्याख्या इस प्रकार है:
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**1. मृत्यु की प्रकृति: शरीर और आत्मा का भेद**
- कठोपनिषद (1.1.20) में यमराज नचिकेता को समझाते हैं कि **"आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है"**, जबकि शरीर नश्वर है।
> *"न जायते म्रियते वा विपश्चिन्नायं कुतश्चिन्न बभूव कश्चित्।
> अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।"*
*(यह आत्मा न तो जन्मता है, न मरता है... शरीर के नष्ट होने पर भी इसका नाश नहीं होता।)*
- मृत्यु **शरीर का परिवर्तन** है, आत्मा का नहीं। जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है (2.2.22)।
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**2. मृत्यु का भय: अज्ञान का परिणाम**
- यमराज कहते हैं कि मृत्यु का भय केवल **अविद्या** (अज्ञान) से उत्पन्न होता है। जो व्यक्ति आत्मा को शरीर समझता है, वही मृत्यु से डरता है (1.2.12)।
- **ज्ञानी व्यक्ति** मृत्यु को "द्वार" मानकर उसके पार देखता है, जहाँ अनंत आनंद (ब्रह्म) है।
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**3. मृत्यु पर विजय: आत्मज्ञान द्वारा**
- कठोपनिषद (2.3.18) में **"उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत"** कहकर जागृत होने का संदेश दिया गया है।
- मृत्यु को जीतने का एकमात्र उपाय **ब्रह्मज्ञान** है:
> *"यमेवैष वृणुते तेन लभ्यः, तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम्।"*
*(जिसे आत्मा स्वीकार करती है, उसे ही वह अपना स्वरूप प्रकट करती है।)*
- जो **अन्नमय कोश** (शरीर) को ही "स्वयं" मानता है, उसके लिए मृत्यु सत्य है; परंतु जो **आनंदमय कोश** (आत्मा) को पहचान लेता है, उसके लिए मृत्यु एक संक्रमण मात्र है।
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**4. मृत्यु के बाद: पुनर्जन्म और मोक्ष**
- कठोपनिषद (2.2.7-9) में **पुनर्जन्म** का सिद्धांत बताया गया है। कर्मानुसार आत्मा नया शरीर धारण करती है।
- परंतु जो **ब्रह्म को जान लेता है**, वह "मृत्यु के पार" चला जाता है और **मोक्ष** प्राप्त करता है:
> *"तमेतं वेदानुवचनेन ब्राह्मणा विविदिषन्ति..."*
*(इसी (ब्रह्म) को जानने की इच्छा से ऋषि वेदों का अध्ययन करते हैं।)*
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**सारांश:**
कठोपनिषद के अनुसार—
1. मृत्यु **शरीर का नाश** है, आत्मा का नहीं।
2. **अज्ञानी** मृत्यु से भय खाते हैं, जबकि **ज्ञानी** इसे एक गंतव्य मानकर स्वीकार करते हैं।
3. **ब्रह्मज्ञान** ही मृत्यु पर विजय दिलाता है और मोक्ष की ओर ले जाता है।
इस प्रकार, कठोपनिषद मृत्यु को **आध्यात्मिक यात्रा का एक चरण** मानता है, जिसे ज्ञान द्वारा पार किया जा सकता है।
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